जन्माष्टमी की पूजा में खीरे (cucumber) का बहुत ही महत्व है, जानिए कारण

जन्माष्टमी की पूजा में खीरे (cucumber) का बहुत ही महत्व है, जानिए कारण 

जन्माष्टमी की पूजा – 

कृष्ण जन्माष्टमी( Krishna Janmashtami ) के दिन भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस साल फिर 2 दिन जन्माष्टमी पड़ रही है. कोई 18 अगस्त को पर्व मना रहा है तो कोई 19 अगस्त को.

खैर कभी भी जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाए पर यह जानना जरूरी है कि कृष्ण पूजा में किन चीजों का बहुत महत्व होता है. तो आज हम आपको बता रहे हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के महत्व के बारे में और पूजा सामग्री में किस-किस सामान की आवश्यकता होती है. जन्माष्टमी की पूजा

जन्माष्टमी की पूजा

जन्माष्टमी की रात 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन श्रृंगार , भोग के साथ एक चीज बहुत ही जरूरी है, जिसके बिना श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव अधूरा माना जाता है,  वह चीज है खीरा.

जी हाँ खीरे के बगैर कृष्ण जन्मोत्सव की पूजा पूरी ही नहीं होती. तभी तो इस समय बाजार में खीरे के दाम आसमान छूने लगते हैं फिर भी महंगे-सस्ते की फिक्र न करते हुए भक्तजन इसे खरीदते ही हैं. जन्माष्टमी की पूजा

जानें खीरे का महत्व –

जन्माष्टमी की पूजा में लोग श्रीकृष्ण को खीरा चढ़ाते हैं. माना जाता है कि नंदलाल खीरे से काफी प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सारे संकट हर लेते हैं. इस दिन ऐसा खीरा लाया जाता है जिसमें थोड़ा डंठल और पत्तियां भी होनी चाहिए.जन्माष्टमी की पूजा
मान्यताओं के अनुसार, जन्मोत्सव के समय इसे काटना शुभ माना जाता है. जन्माष्टमी की पूजा

जन्माष्टमी की पूजा

खीरा काटना क्यों शुभ होता है –

आपको बता दें कि जिस तरह एक मां की कोख से बच्चे के जन्म के बाद मां से अलग करने के लिए ‘गर्भनाल’ को काटा जाता है. ठीक उसी तरह खीरे और उससे जुड़े डंठल को ‘गर्भनाल’ मान काटा जाता है जोकि कृष्ण को मां देवकी से अलग करने के लिए काटे जाने का प्रतीक है.

खीरा काटने कि विशेष प्रक्रिया –

ऐसे किया जाता है नाल छेदन (नाल छेदन) – जन्माष्टमी पर खीरे को काटने की इस प्रकिया को नाल छेदन के नाम से जाना है. इस दिन खीरा लाकर कान्हा के झूले या फिर भगवान कृष्ण के पास रख दें. जैसे ही 12 बजे यानी भगवान कृष्ण का जन्म हो, उसके तुरंत बाद एक सिक्के की मदद से खीरा औऱ डंठल को बीच से काट दें. इसके बाद शंख जरूर बजाएं.

जन्माष्टमी की पूजा विधि –

प्रातःकाल उठकर स्नान करें. घर के मंदिरों में रखे कान्हा जी को तैयार करें. नए वस्त्र पहनाएं. पीले फूलों की माला राधा कृष्ण को अर्पित करें. सामथ्र्य के अनुसार व्रत करें. रात्रि 11 बजे स्नान करके विधि पूर्वक बाल गोपाल की पूजा अर्चना करें.

जन्माष्टमी की पूजा

रात्रि 12 बजे नंदलाल का अभिषेक करें. जन्म से पहले सालिगराम जी को खीरे से निकालकर पंचामृत से स्नान कराएं. जन्माष्टमी से लेकर छठ पूजा तक कान्हा जी को झूले पर विराजमान रहने दें. इसके बाद सिंहासन पर विराजमान करें.  नवमीं चार सितंबर को दान देकर व्रत खोलें.

अभिषेक में इनका करें उपयोग –

नंदलाल के अभिषेक में दूध, दही, शहद, गंगाजल, देशी घी का प्रयोग करें. अभिषेक के बाद माखन, मिश्री, खीर, ककड़ी, आटे की पंजीरी, धनिए की पंजीरी से भोग लगाएं. भोग को परिवार के सभी सदस्यों व आस-पास के लोगों में बंटवाएं.

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