बेटी की परवरिश करते समय हर माता पिता को ये 10 बातें ध्यान में रखनी चाहिए
बेटी की परवरिश कैसे करें –
आज के समय में हमारे समाज में लड़की और लड़के को लेकर लोगों के विचारों में काफी बदलाव आया है. पुराने समय की तुलना में अब लोग लड़की हो या लड़का दोनों को समान दृष्टि से देखने लगे हैं. माता-पिता के लिए सबसे कठिन बच्चों की अच्छी परवरिश होती है. बेटी की परवरिश
इंटरनेट पर एक कहावत है – एक लड़के की परवरिश – एक आदमी की परवरिश, एक लड़की की परवरिश – एक राष्ट्र का पालन-पोषण. बेटी की परवरिश
यह सही भी है, क्योंकि जो कुछ तुम एक लड़की के दिमाग में डालोगे वह सब उसके बाद उसके वंश में जाएगा. बेटी भावी पीढ़ी की नींव होती है. लड़का पीढ़ी का रक्षक, दीवार और सहारा होता है. बेटी आपकी सबसे बड़ी पूंजी होती है. वह सुंदर होती है, मासूम होती है और एक सार्थक जिंदगी जीने का हक रखती है. ये बातें अपनी जगह पर सही हैं पर मां-बाप को चाहिए कि वह बेटी की परवरिश इस तरह से करें ताकि वह समाज में सिर उठा कर जी सके.
बेटी की परवरिश करना एक मुश्किल काम है और इसके लिए काफी सावधानी की जरूरत होती है. आमतौर पर लड़कियों के पीरियड्स 13 साल की उम्र के बाद शुरू होते हैं और इसके बाद वो बच्ची से किशोर बन जाती है. इस उम्र तक लड़कियों को कुछ बातें जरूर सिखा देनी चाहिए.
तो चलिए जानते हैं 10 अहम बातें जो बेटी की परवरिश के समय उनको ज़रूर सिखानी चाहिए –
(1) बेटियों के लिए पहली सीख यह होनी चाहिए कि वे खुद का ख्याल रखें. माता-पिता अपनी बेटियों को यह बताएं कि दूसरों का ख्याल तभी रखा जा सकता है जब वह पहले अपना ख्याल रखें. जब बेटियां खुद तंदुरुस्त होंगी तभी वह दूसरों का ख्याल रख सकेंगी. बेटी की परवरिश
(2) भारतीय पेरेंट्स अक्सर अपनी बेटियों को कम आवाज में या धीरे बात करना और उन्हें समाज में आवाज उठाने से मना करते हैं. अपनी बेटी को सशक्त बनाने के लिए आप उसे 13 साल की होने से पहले ही ये समझा दें कि सही होने पर आवाज उठाना गलत नहीं है. इसकी शुरुआत आपके खुद के घर से ही होनी चाहिए. इस उम्र की लड़कियों का मन बहुत नाजुक होता है इसलिए उन्हें प्यार से समझाएं. बेटी की परवरिश
(3) 13 साल के बाद लड़कियां किशोरावस्था में कदम रखती हैं और अब उनकी दुनिया मम्मी-पापा से थोड़ी आगे होने लगती है. इस उम्र में लड़कियों को घर के बाहर की दुनिया से रूबरू करवाएं और उन्हें समझाएं कि अगर उन्हें कोई चीज पसंद नहीं है तो वो सख्ती से ना कह सकती हैं. लड़कियां को प्यार से बात करनी तो आनी ही चाहिए लेकिन जब उन्हें कोई चीज गलत लगे, तो ना कहने में भी कतराना नहीं चाहिए.
(4) शादी से पहले माता पिता पर निर्भर रहना और शादी के बाद पति पर निर्भर रहना बेटियों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचा सकता है. इसलिए अपनी बेटी को हर क्षेत्र में शिक्षित करने की कोशिश करें. इतना ही नहीं, उनके सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध कराएं. बेटी की परवरिश आसान नहीं है. इसके लिए अच्छी देखभाल और समय की जरूरत होती है. बेटी की परवरिश
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(5) परवरिश के दौरान कभी भी बेटियों और बेटों में फर्क नहीं करना चाहिए. कई बार ये देखा गया है की पेरेंट्स बेटे और बेटी की परवरिश के दौरान बेटों को अधिक प्राथमिकता देते हैं या उनकी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं पर बेटियों के साथ ऐसा नहीं करते हैं. ऐसा करने से बेटी के मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए बेटी को इस बात का विश्वास दिला दें कि वो किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं हैं. बेटी की परवरिश
(6) बेटियों को बताएं की आज़ादी से कैसे जिया जाता है. बेटियों को ये भी बताना ज़रूरी होगा कि आज़ादी का मतलब गलत संगत में पड़ना और ज़िम्मेदारियों से भागना नहीं है. आज़ादी का मतलब है अपने कर्तव्यों को निभाते हुए खुद को सर्वश्रेष्ठ रखना. किसी के दबाव में आकर गलत फैसलों से दूर रहना ही आज़ादी है. बेटी की परवरिश
(7) प्यूबर्टी शुरू होने पर शारीरिक बदलाव आने नॉर्मल बात है और इसका लड़कों से ज्यादा असर लड़कियों पर पड़ता है. पेरेंट्स होने के नाते आपका यह फर्ज बनता है कि आप उसे इन बदलावों के बारे में ज्यादा से ज्यादा बताएं और इसके लिए तैयार करें. हार्मोनल बदलाव, मासिक चक्र, पर्सनल हाइजीन और साफ-सफाई जैसी हर चीज के बारे में अपनी बेटी से बात करें. बेटी की परवरिश
(8) अकसर लड़कियां किसी न किसी दबाव में आकर या परिवार वालों के मान-सम्मान को बचाने के कारण हां बोल देती हैं. ऐसे में वह भूल जाती हैं कि उनके हां या ना पर पूरी जिंदगी दांव पर लगी है. ऐसे में माता-पिता बचपन से ही लड़कियों को सिखाएं की कैसी भी परिस्थिति आए यदि उस परिस्थिति में आपको लगता है कि आपके हां बोलने से आपका जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है तो ऐसे में ना बोलना ही सही है. किसी भी दबाव में आकर कोई निर्णय न लें.
(9) गलत चीज़ों और हालातों से लड़ने के लिए बेटियों को कम उम्र से ही तैयार करना चाहिए. उनके साथ होने वाला दुर्व्यवहार या होने वाले भेदभाव के खिलाफ उन्हें सजग करें. बेटियों को गुड टच (good touch) और बैड टच (bad touch) के बारे में अच्छी तरह से जानकारी दें. बेटी की परवरिश
(10) पैरेंट्स तो हमेशा ही अपने बच्चे की हर मुश्किल में काम आते हैं लेकिन वो हर जगह नहीं हो सकते हैं इसलिए बच्चों को खुद शारीरिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनना चाहिए. जब लड़कियां मुश्किल वक्त में खुद अपना ध्यान रख पाएंगी, तो इससे उनका ही आत्मविश्वास बढ़ेगा. इसके लिए आप उसे सेल्फ डिफेंस क्लास दिलवा सकती हैं. बेटी की परवरिश
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