सीता नवमी व्रत कब है..? जानिए इस व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त

सीता नवमी व्रत कब है..? जानिए इस व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त

सीता नवमी व्रत – 

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन माता जानकी सीता का प्राकट्य दिवस (जयंती) मनाई जाती है. देवी सीता का जन्म पुष्य नक्षत्र के दौरान हुआ था. सीता का अर्थ हल चलाना है. विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पतियों के लम्बे जीवन तथा सफलता के लिए व्रत रखकर माता सीता के साथ भगवान श्रीराम जी का विधिवत पूजन करती है.

सीता नवमी व्रत का महत्व  (Importance of Sita Navami fast) – 

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी कहते हैं. धर्म ग्रन्थों के अनुसार, इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था. इस पर्व को जानकी नवमी भी कहते हैं. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए भूमि जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि में दबी हुई एक बालिका मिली.

सीता नवमी व्रत

 

जोती हुई भूमि को तथा हल की नोंक को सीता कहते हैं. इसलिए उस बालिका का नाम सीता रखा गया. इस दिन वैष्णव सम्प्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं. ऐसा कहते हैं जो भी इस दिन व्रत रखता है व श्री राम सहित माता सीता का पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल, सभी तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है. इसलिए इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए. Sita navmi व्रत का बड़ा ही महत्व होता है.

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सीता नवमी की तिथि (Date of sita navami) –

जानकी नवमी का त्यौहार वैशाख के हिंदू महीने में नवमी तिथि, यानी शुक्ल पक्ष के नौवें दिन के दौरान मनाया जाता है. कैलेंडर के अनुसार 2022 में सीता नवमी के 10 मई को मनायी जाएगी.

सीता नवमी व्रत

सीता नवमी की पूजा विधि (Worship method of Sita Navami) – 

इस दिन दिन व्रत रखकर भगवान श्रीराम एवं माता सीता जी का विशेष पूजन किया जाता है. माना जाता है कि इस दिन जो महिला या कुंवारी कन्या व्रत रखती है उसे पृथ्वी दान करने के बराबर पुण्यफल मिलता है. इस व्रत को करने के लिए व्रत रखने वाली महिला या कन्या को पूजा करने के लिए अपने घर के पूजा स्थल पर साफ-सफाई करके एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर राम-सीता जी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करना होगा.

इसमें विधिवत सोलह प्रकार की पूजा सामग्रियों से पूजन करना होता है. सीता नवमी की कथा सुनाई जाती है. उसके बाद महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना एवं कंवारी कन्याएं योग्य जीवन साथी की कामना करती हैं और व्रत रखती हैं.

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