गणगौर व्रत कब है..? जानिए शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

गणगौर व्रत कब है..? जानिए शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

गणगौर व्रत (Gangaur vrat) – 

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर गणगौर व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए माता पार्वती से मनोकामना करती हैं. इस व्रत को खासतौर पर उत्तरी भारत की महिलाएं रखती हैं और इस दिन पूजा-अर्चना करती हैं. गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ पार्वती बताया जाता है.  कहते हैं इस गणगौर पूजा को अलग-अलग जगहों पर भिन्न अवधि तक मनाया जाता है, कहीं 16 दिनों तक तो कहीं सिर्फ 3 दिनों तक.

पौराणिक मान्यता (Mythological belief) –

मान्यता है कि शिवजी से विवाह के बाद जब देवी पार्वती पहली बार मायके लौटी थीं तभी से उनके आगमन की खुशी में स्त्रियां “गणगौर” का त्यौहार मनाती हैं. इसलिए नवविवाहित लड़कियां अपना पहला गणगौर मायके में ही पूजती हैं. गणगौर व्रत

गणगौर व्रत 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त (Gangaur Vrat 2022 Date and Shubh Muhurta) –

गणगौर पूजा प्रारंभ – 18 मार्च 2022

तिथि समाप्त – 4 अप्रैल 2022

गणगौर व्रत

गणगौर व्रत का महत्व (Importance of Gangaur Vrat) –

नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्यौहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है. विवाहित स्त्रियां इसे अपने पति की मंगल कामना और अखंड सौभाग्य का वरदान पाने के लिए मनाती हैं. अविवाहित कन्याएं गौर माता से मन चाहा वर पाने की मनोकामना लिए सोलह दिन गणगौर की पूजा करती हैं. शास्त्रों के अनुसार माँ पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया.

गणगौर व्रत पूजा सामग्री (Gangaur Vrat Puja Material) –

आसन, कलश, काली मिट्टी, अक्षत, ताजे फूल, आम की पत्ती, नारियल, सुपारी, पानी से भरा हुआ कलश, गणगौर के कपड़े, गेंहू, बांस की टोकरी, चुनरी, हलवा, सुहाग का सामान, कौड़ी, सिक्के, घेवर, चांदी की अंगुठी, पूड़ी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, शृंगार का सामान, शुद्ध घी, दीपक, गमले, कुमकुम आदि.

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गणगौर व्रत

गणगौर व्रत कैसे करें (Gangaur vrat kaise kare) –

  • चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए.
  • इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए.
  • इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है. गणगौर व्रत
  • जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए.
  • गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं. गणगौर व्रत
  • सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है.
  • इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है.
  • भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है.
  • कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर को विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए.
  • कुंआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. गणगौर व्रत
  • चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं.
  • चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं.
  • इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें. गणगौर व्रत
  • इसी दिन शाम को उपवास भी छोड़ा जाता है.

गणगौर व्रत

गणगौर व्रत कथा (Gangaur vrat katha) –

गणगौर व्रत का संबंध भगवान शिव और माता से है. शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले. सभी एक गांव में पहुंचें. जब इस बात की जानकारी गांव वालों को लगी तो गांव की संपन्न महिलाएं तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें. तो वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई. गणगौर व्रत

ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया. फिर थोड़ी देर में संपन्न परिवार की महिलाएं तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंची लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा. इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया. ऐसे में अब आप क्या करेंगी. तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बांटे. गणगौर व्रत

इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था इसके बाद सभी महिलाएं घरों को लौट गई. इसके बाद माता पार्वती ने नदी के तट पर स्नान कर बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया. फिर बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं. गणगौर व्रत

यह सभी बातें भगवान शिव जानते थे फिर भी माता पार्वती को छेड़ने के लिए पूछा कि स्नान करने में बहुत देर लगा दी. तब माता ने कहा कि मायके वाले मिल गये थे जिसके कारण इतनी देर हो गई. फिर भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं स्नान के बाद प्रसाद में क्या लिया? इसके जवाब में माता ने कहा कि भाई और भावज ने दूध-भात बना रखा था उसी को ग्रहण कर सीधे आपके पास आई हूं. गणगौर व्रत

गणगौर व्रत

फिर भगवान शिव ने भाई भावज के यहां चलने को कहा ताकि उनके यहां बने दूध-भात का स्वाद चख सकें. तब माता ने अपने को संकट में फंसे देख मन ही मन भगवान शिव को याद कर अपनी लाज रखने की कही. इसके बाद नारद मुनि को साथ लेते हुए तीनों लोग नदी तट की तरफ चल दिये. वहां पहुंच कर देखा कि एक महल बना हुआ है. जहां पर खूब आवभगत हुई. इसके बाद जब वहां से तीनों लोग चलने लगे तो कुछ दूर चलकर भगवान शिव माता से बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं. गणगौर व्रत

माता पार्वती के कहने पर नारद जी वहां से माला लेने के लिए उस जगह दोबारा गए तो वहां पहुंचकर हैरान रह गए क्योंकि उस जगह चारों तरफ सन्नाटे के आलावा कुछ भी नहीं था. तभी एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की रूद्राक्ष की माला दिखाई दी उसे लेकर वे लौट आए और भगवान शिव को सारी बातें बताई. तब भगवान शिव ने कहा कि यह सारी माया देवी पार्वती की थी. वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थी इसलिए उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रच दी.

तब नारदजी ने देवी माता से कहा कि मां आप सौभाग्यवती और आदिशक्ति हैं. ऐसे में गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली एवं सार्थक होती है. तभी से जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी. इसी कथा के चलते तभी से गणगौर व्रत को महिलाएं अपने पति से छिपाते हुए करती हैं. तभी से लेकर गणगौर के इस गोपनीय पूजन की परंपरा चली आ रही है. गणगौर व्रत

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