विनायक चतुर्थी व्रत कब है..? जानिए व्रत की पूजा विधि और कथा के बारे में
विनायक चतुर्थी व्रत –
हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक हर माह की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी होती है. हर माह के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं. भगवान श्री गणेश जी को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है.
भगवान श्री गणेश को विनायक, गजानन, गणपति, लंबोदर, विघ्नहर्ता आदि नामों से भी जाना जाता है. किसी भी मांगलिक या धार्मिक कार्य को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की सर्वप्रथम पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चतुर्थी के दिन श्रीगणेश की पूजा और व्रत रखने से सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है. आप जो भी व्रत रखते हैं, उसकी व्रत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए. उस व्रत कथा को सुनने से ही उसका पूरा फल प्राप्त होता है और मनोकामना पूर्ण होती है.
इसलिए आइए जानते हैं कि विनायक चतुर्थी व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में –
चतुर्थी तिथि मई में –
शुक्ल पक्ष विनायक चतुर्थी
बुधवार, 04 मई 2022 विनायक चतुर्थी
04 मई सुबह 7:33 बजे – 05 मई सुबह 10:01 बजे
कृष्ण पक्ष संकष्टी चतुर्थी विनायक चतुर्थी
गुरुवार, 19 मई 2022
18 मई रात 11:37 बजे – 19 मई रात 8:24 बजे
विनायक चतुर्थी पूजा विधि (Vinayaka chaturthi puja vidhi) –
विनायक चतुर्थी के दिन उपासक सुबह उठकर स्नानादि करके लाला रंग का साफ सुथरा कपड़ा पहनें. फिर भगवान गणेश जी को पीले फूलों की माला अर्पित करें. उसके बाद गणेश भगवान की प्रतिमा के सामने धूप दीप प्रज्वलित करके नैवेद्य, अक्षत उनका प्रिय दूर्वा घास, रोली अक्षत चढ़ाएं. इसके बाद गणेश जी को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं. आखिरी में व्रत कथा पढ़कर गणेश जी की आरती करें. फिर शाम को चंद्रदर्शन करने के बाद व्रत को खोलें. विनायक चतुर्थी
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विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayaka chaturthi vrat katha) –
गणेश चतुर्थी से जुड़ी चार कथाएं हैं. एक कथा गणेश जी और कार्तिकेय जी के बीच पृथ्वी की परिक्रमा वाली है. दूसरी कथा भगवान शिव द्वारा गणेश जी को हाथी का सिर लगाने वाली कथा है. तीसरी कथा राजा हरिश्चंद्र और एक कुम्हार की है. चौथी कथा नदी किनारे भगवान शिव और माता पार्वती के चौपड़ खेलने वाली है. आज हम आपको चतुर्थी की चौथी कथा के बारे में बताते हैं. विनायक चतुर्थी
विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayaka Chaturthi Vrat katha) –
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे. वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा. शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया. यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं. खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया. यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया. विनायक चतुर्थी
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे.’ यह कहकर माता पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं. एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया. उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए. उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा. उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों.’
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई. चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई. तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई. विनायक चतुर्थी
यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई. तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया. व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है. इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं.
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व (Importance of Vinayaka Chaturthi Vrat) –
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं. भक्तों के कार्यों में आने वाले संकटों को दूर करते हैं. उनकी कृपा से व्यक्ति के कार्य बिना विघ्न बाधा के पूर्ण होते हैं. वे शुभता के प्रतीक हैं और प्रथम पूज्य भी हैं, इसलिए कोई भी कार्य करने से पूर्व श्री गणेश जी की पूजा की जाती है.
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