गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा क्यों नहीं देखना चाहिए..?

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा क्यों नहीं देखना चाहिए..?

गणेश चतुर्थी (Ganesh chaturthi) – 

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) सनातन हिंदु धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, इसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदु पंचांग के अनुसार गणेश उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि से चतुर्थदशी तक चलता है. इसके बाद चतुर्थदशी को भगवान गणेश का विसर्जन किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन गणपति भगवान का जन्म हुआ था.

गणेश चतुर्थी

इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके कष्टों का निवारण होता है. इस साल गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का पावन पर्व 31 अगस्त 2022 को बुधवार के दिन पड़ रहा है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न काल गणेश पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है.

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भगवान गणेश की उत्पत्ति माता पावर्ती ने एक प्रतिमा बनाकर की थी. माना जाता है कि मां पावर्ती ने अपने उबटन से एक प्रतिमा बनाई और उसे नाम दिया गणेश. उसके बाद वो स्नान करने गई और गणेश जी को द्वार के पास पहरा देने को कहा कि किसी को अंदर आने की अनुमति मत देना. गणेश चतुर्थी

बाल गणेश पूर्ण भाव से द्वार पर पहरा दे रहे थे कि तभी शिव जी पहुंचते हैं और अंदर जाने लगते हैं लेकिन वो उन्हें रोकते हैं. बाल गणेश को उस वक्त ये नहीं पता था कि भगवान शिव उनके पिता हैं. वो अपनी बात पर अड़े रहे और भगवान शिव क्रोधित हो गए.

गणेश चतुर्थी

दोनों में संघर्ष हुआ और भगवान शिव का क्रोध इतना बढ़ गया कि उन्होंने बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. जब माता पावर्ती अपने पुत्र को ढूंढते हुए आईं और उन्हें सच के बारे में पता चला, तो वो बेहद क्रोधित हुईं. अपने पुत्र को खोकर मां पावर्ती ने काली का रूप धारण कर लिया था.

पावर्ती मां के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव और सभी देवगणों ने मिलकर एक हाथी के बच्चे का सिर ढूंढा और उसे बाल गणेश के धड़ से जोड़ा गया. पुत्र को जीवित देखकर मां पावर्ती प्रसन्न हो गईं. ये घटना जिस दिन हुई उस दिन भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की चुतर्थी थी. इसीलिए इसे गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है.

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आपको बता दें कि गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी, कलंक चौथ और पत्थर चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर चंद्रमा को क्यों नहीं देखना चाहिए.

कथा – एक बार गणेश जी अपने मूषक पर सवार होकर खेल रहे थे, कि तभी अचानक मूसकराज को सर्प दिखा. जिसे देखकर वह डर के मारे उछल पड़े और उनकी पीठ पर सवार गणेश जी का संतुलन बिगड़ गया. गणेश जी ने तभी मुड़कर देखा कि कहीं उन्हें कोई देख तो नहीं रहा है. रात्रि के कारण आसपास कोई भी मौजूद नहीं था, तभी अचानक जोर जोर से हंसने की आवाज आई. ये आवाज किसी और की नहीं बल्कि चंद्र देव की थी. चंद्रदेव ने गणपति महाराज का उपहास उड़ाते हुए कहा कि छोटा सा कद और गज का मुख. चंद्र देव ने सहायता करने के बजाए विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी का मजाक उड़ाया.

गणेश चतुर्थी

यह सुनते ही गणेश जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि, जिस सुंदरता के अभिमान के कारण तुम मेरा उपहास उड़ा रहे हो वह सुंदरता जल्द ही नष्ट हो जाएगी. भगवान गणेश जी के श्राप के कारण चंद्रदेव का रंग काला पड़ गया और पूरे संसार में अंधेरा छा गया. तब सभी देवी देवताओं ने मिलकर गणेश जी को समझाया और चंद्रदेव ने अपने कृत्य के लिए माफी मांगी.

चंद्रदेव को क्षमा करते हुए गणेश जी ने कहा कि मैं अपना दिया हुआ श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन महीने में एक दिन आपका रंग पूर्ण रूप से काला होगा और फिर धीरे धीरे प्रतिदिन आपका आकार बड़ा होता जाएगा तथा माह में एक बार आप पूर्ण रूप से दिखाई देंगे. कहा जाता है कि तभी से चंद्रमा प्रतिदिन घटता और बढ़ता है. गणेश जी ने कहा कि मेरे वरदान के कारण आप दिखाई अवश्य देंगे, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन जो भी भक्त आपके दर्शन करेगा उसे अशुभ फल की प्राप्ति होगी.

बस तभी से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाने लगा.

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